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अमित राजपूत
आओगी इक रोज़ नाज़नीन
ग़र इश्क़ इबादत सुनता है ।
रह रहकर तुम पछताओगी
ग़र इश्क़ इबादत सुनता है ।
उन दूर छिटकती राहों को
औ मद से भरी निगाहों को,
हर ज़ोर जुर्म से लिपटीं जो
आसक्त दूसरी बाहों को
झुठलाओगी...
खुलवाओगी...
ग़र इश्क़ इबादत सुनता है ।
रह रहकर तुम पछताओगी
ग़र इश्क़ इबादत सुनता है ।
है बड़ा अचम्भा मौन भला,
तुम प्यार का छोड़ो तौल भला,
जो तपती उड़ती रहती हो
बरसोगी झमा घनघोर भला
भीगोगी...
संग भिगाओगी...
ग़र इश्क़ इबादत सुनता है ।
रह रहकर तुम पछताओगी
ग़र इश्क़ इबादत सुनता है ।
भाई गज़ब लिखते हो..
ReplyDeleteशानदार प्रयास ।
हौसला आफ़जाई के लिए शुक्रिया प्रभात भाई
DeleteBahut umda.badhai
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया भइया
Deleteबहुत बहुत शुक्रिया भइया
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