Thursday, 26 October 2017

साँवरे…

अमित राजपूत



शेर- लोग कहते हैं मुझे मैं भटकता भौंरा हूं
हर किसी की ज़द में आ जाए वो दौरदौरा हूं !
मिले जो आकर के ज़रा कोई मुझसे तो
चलेगा फ़िर मालूम के हाँमैं किसका औरा हूं !!

प्यार में डूबे हैं तेरे प्यार में हैं बावरे
नैनों में बस गए जो सनम हो गए हम साँवरे
प्यार में...

चश्म-ए-बद दूर हुआ
जब से तेरी नज़र लगी
नूर-ए-चश्म सजा
तिरछी चितवन में तेरी
रचा सूरमा कमाल किया और भी लगे प्यारे
प्यार में...

तपती धूप घनी
ठण्डी-मीठी छाँव बने
केश घुंघरारे घन
प्रेम बरसात करें
तेरे ताबेदार गेसुओं पे बन रहे मुहावरे
प्यार में...

तेरी मधु-सोम कली
जब मेरे अधर खिले
धड़कनें संग जुड़ें
जब-जब सांस मिले
होके महरम भी हमने लो तोड़ दिए दायरे
प्यार में...


अभिमन्यु

∙ अमित राजपूत 

मिज़ाजी इश्क़ जब सर पर सवार होता है
उफ़ान जब दरिया का साहिल के पार होता है,
व्यूह में फंसी हो ग़र धर्मराज की सेना

तो सुभद्राजना कोई अभिमन्यु ही तैयार होता है।

चाहतें लुटती हैं...

अमित राजपूत



चाहतें लुटती हैं यहाँ चाहतें संजोना है,
कोई देव सा ऊँचा तो कोई घिनौना है।

जिनके अनुग्रह ने कभी रूह को पाकीज़ा किया- दो
चाहतें उनके लिए आज शक का घरौंदा है
कोई देव सा...
चाहतें लुटती हैं यहाँ चाहतें संजोना है,
कोई देव सा ऊँचा तो कोई घिनौना है।

इश्क अनमोल बड़ा कीमती ये गहना है- दो
चाहतें नादिर हैं किसी-किसी ने पहना है
कोई देव सा...
चाहतें लुटती हैं यहाँ चाहतें संजोना है,
कोई देव सा ऊँचा तो कोई घिनौना है।

मद में आकर के जवाँ मर्द बन रहे हैं कई- दो
चाहतें लाश बनीं उनके तन का बिछौना है
कोई देव सा...
चाहतें लुटती हैं यहाँ चाहतें संजोना है,
कोई देव सा ऊँचा तो कोई घिनौना है।

Tuesday, 17 October 2017

देवत्व : एक बीमारी


∙ अमित राजपूत

देवत्व एक बीमारी है । बीमारी भी ऐसी कि इससे पीड़ित व्यक्ति को यह नाशवान तो बनाती ही है लेकिन साथ ही साथ इसके संसर्ग में आकर इस पर अपनी आस्था टिकाने वाले जन भी अकिंचन और पतन को प्राप्त होते हैं । इसीलिए मनुष्य मात्र को देवत्व का परहेज करना चाहिए । वस्तुतः मनुष्य होने के लिए मनुष्यता या मानवता ही एकमात्र गुणधर्म किसी भी मानव के लिए महत्वपूर्ण और आवश्यक हैं । इसी की सिद्धि भी आवश्यक है । हालांकि कुछ लोग स्वयं में अहंभाव वश देवत्व की तलाश कर मानव जगत को संक्रमित करते हैं । इस काम में वे लोग भी उतने ही जिम्मेदार और दोषी हैं जोकि दूसरे मानव में देवत्व का थोथा दर्शन करने का स्वांग रचते हैं ।

देवत्व के फरेब वाले इस स्वांग में ज्ञान, राज और अर्थ इन तीनों ही राजसत्ताओं से घिरे लोग आपको मरकट की तरह नाचते मिल जाएंगे । एक ऐसा ही दिलचस्प खेल अभी हाल ही में डेरा सच्चा सौदा के गुरमीत राम रहीम के मामले में सबको देखने को भी मिला । इससे पहले भी ऐसे कई स्वांग समाज अपने-अपने समय में देख चुका है और इसे आज तक देखने का आदी भी बना हुआ है । राम रहीम के अलावा रामपाल और आसाराम जैसे कई और उदाहरण हमारे समने मौजूद हैं जो इसी देवत्व की बीमारी से उपजी महामारी की तरह है । ये महामारी इतनी दूषित और इसके संक्रमण इतने जटिल हैं कि इसके पीड़ितों को समाज के बीच से पहचान कर निकाल पाना बहुत ही मुश्किल भरा काम है । इसके पीड़ित जन आपको सफ़ेद कॉलर और सूट-बूट के साथ देश के रथ को हांकने वाले योग्य सारथी तक निकल आते हैं ।

ये वास्तव में अंधविश्वास और अपने स्व को नष्ट कर देने वाली एक बेहद ख़तरनाक बीमारी है जोकि मानवता की हत्या तक कर देने में सक्षम है । दुःखद है कि देवत्व की बीमारी से समाज का एक बड़ा वर्ग पीड़ित है । इसीलिए एक ऐसा अभियान अति आवश्यक है जो इस बीमारी के ख़िलाफ़ हथियार उठाकर इससे निरंतर लड़ता रहे जब तक कि समाज देवत्व से परे समता की गति को प्राप्त न हो जावे ।

Thursday, 12 October 2017

मनवा की पीर

अमित राजपूत


मोरे मनवा की पीर बढ़ि आई
रे मइया मोरी
देखुंगा अपनी जोन्हाई...

छुटपन तो बीत गयो
जिया अकुलाई
जोधा बनि गयो अब
मोछो रेखियाई
देखो आ गयी मोरी तरुणाई
रे मइया मोरी
देखुंगा अपनी जोन्हाई...

परदेसवा दउड़े मोहे
काटे कटाई
हुँआ मोरी माई मोरा
जिया न लगाई
मोसे सही न जाए तन्हाई
रे मइया मोरी
देखुंगा अपनी जोन्हाई...

बैरी-दुनिया न सोहै मोहे
लागै पराई
छोड़ुंगा खेल ये
छुप्पन छुपाई
अब कब तक करौं सकुचाई
रे मइया मोरी
देखुंगा अपनी जोन्हाई...

हाथ करो पियर दोनों
हरदी लगाई
रोली संग कुमकुम-काजर
मेंहदी रचाई
उसे दुलहिन जइसन सजाई
रे मइया मोरी
देखुंगा अपनी जोन्हाई...

मोरे मनवा की पीर बढ़ि आई
रे मइया मोरी

देखुंगा अपनी जोन्हाई...

Wednesday, 11 October 2017

तौबा...


तौबा-ए-इश्क़ किया था
मग़र
तौबा रे तौबा
वो फ़िर मुस्कुरा गये...

Tuesday, 3 October 2017

हार


अमित राजपूत
आज देखो
एक और हार का हार
मेरे सीने से आ लगा है
औ रेशमी सूत पर
कुमुदुनी की कोमल पंखुड़ियाँ
कैसे खूब जच रही हैं
सफलता मेरी देखो...
अब भी दुल्हन की तरह सज रही है।

नवाज़े थे कई दिन
तुमको
इल्म न रहा
के अब स्वेद स्वाद में बदलने की बारी है
कमबख़्त सफलता का ही पेट बड़ा है
आज देखो
टपकते नमकीन पानी से भरा
मटमैला कटोरा लेकर
मेरा अपना ही जिन्न खड़ा है
सफलता मेरी देखो...
उस पर ही पिण्डली मारे खड़ा है।

करूंगा तुष्ट
फिर संतुष्ट
तेरी आजमाइश का
बनुंगा मैं पति
ऐ हार !
तुझे हमदम बनाऊंगा
मिलुंगा इस क़दर तुझसे
जो फिर वापस न आऊंगा
सफलता मेरी देखो...
कर नाज संग साज तुझको अब बुलाऊंगा।

किया था जो शपथ मैंने
हार को हार बदलुंगा
तोड़कर अबकी पिनाक
हर लूंगा हार
जीतकर के तुझको सच कहूं
ये स्वयंवर रचाउंगा
सफलता मेरी देखो...
करुंगा मान तुझको अंक भरकर ले जाऊंगा।

Monday, 2 October 2017

मासूम परी


अमित राजपूत
मासूम परी लौटी आयी
मासूम परी लौटी आयी

हुआ जगमग जग सारा
मन उपवन मेरा
सींचे है ख़ुद को
ख़ुद हर्षित है अब 
हरा-भरा सब लागे...
आयीरुत मस्तानी मन भायी
मासूम परी लौटी आयी
मासूम परी लौटी आयी

लहद मेरे अरमानों की अब
प्राण भरी पुटकी दिखती है
झीनी वाली चादर थी जो
मखमल जैसी वो लगती है
कब के सोये जागे...
पूरीकर लो आज मिताई
मासूम परी लौटी आयी
मासूम परी लौटी आयी

तेरा प्रेम अमिट जाना मैंने
चहुँ ओर सखी साखी है ये
फिर लौट ग़ज़ब आना तै ने
ताना तन मन बन धन जाना
उसे अरुणाँचल तक साजे...
देखोप्राची शफ़क़ भर आयी
मासूम परी लौटी आयी

मासूम परी लौटी आयी
मासूम परी लौटी आयी ।