∙ अमित राजपूत
देवत्व एक बीमारी है । बीमारी भी ऐसी कि इससे पीड़ित व्यक्ति को यह नाशवान तो बनाती ही है लेकिन साथ ही साथ इसके संसर्ग में आकर इस पर अपनी आस्था टिकाने वाले जन भी अकिंचन और पतन को प्राप्त होते हैं । इसीलिए मनुष्य मात्र को देवत्व का परहेज करना चाहिए । वस्तुतः मनुष्य होने के लिए मनुष्यता या मानवता ही एकमात्र गुणधर्म किसी भी मानव के लिए महत्वपूर्ण और आवश्यक हैं । इसी की सिद्धि भी आवश्यक है । हालांकि कुछ लोग स्वयं में अहंभाव वश देवत्व की तलाश कर मानव जगत को संक्रमित करते हैं । इस काम में वे लोग भी उतने ही जिम्मेदार और दोषी हैं जोकि दूसरे मानव में देवत्व का थोथा दर्शन करने का स्वांग रचते हैं ।देवत्व के फरेब वाले इस स्वांग में ज्ञान, राज और अर्थ इन तीनों ही राजसत्ताओं से घिरे लोग आपको मरकट की तरह नाचते मिल जाएंगे । एक ऐसा ही दिलचस्प खेल अभी हाल ही में डेरा सच्चा सौदा के गुरमीत राम रहीम के मामले में सबको देखने को भी मिला । इससे पहले भी ऐसे कई स्वांग समाज अपने-अपने समय में देख चुका है और इसे आज तक देखने का आदी भी बना हुआ है । राम रहीम के अलावा रामपाल और आसाराम जैसे कई और उदाहरण हमारे समने मौजूद हैं जो इसी देवत्व की बीमारी से उपजी महामारी की तरह है । ये महामारी इतनी दूषित और इसके संक्रमण इतने जटिल हैं कि इसके पीड़ितों को समाज के बीच से पहचान कर निकाल पाना बहुत ही मुश्किल भरा काम है । इसके पीड़ित जन आपको सफ़ेद कॉलर और सूट-बूट के साथ देश के रथ को हांकने वाले योग्य सारथी तक निकल आते हैं ।
ये वास्तव में अंधविश्वास और अपने स्व को नष्ट कर देने वाली एक बेहद ख़तरनाक बीमारी है जोकि मानवता की हत्या तक कर देने में सक्षम है । दुःखद है कि देवत्व की बीमारी से समाज का एक बड़ा वर्ग पीड़ित है । इसीलिए एक ऐसा अभियान अति आवश्यक है जो इस बीमारी के ख़िलाफ़ हथियार उठाकर इससे निरंतर लड़ता रहे जब तक कि समाज देवत्व से परे समता की गति को प्राप्त न हो जावे ।
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