∙ अमित राजपूत
मोरे मनवा की पीर बढ़ि आई
रे मइया मोरी
देखुंगा अपनी जोन्हाई...
छुटपन तो बीत गयो
जिया अकुलाई
जोधा बनि गयो अब
मोछो रेखियाई
देखो आ गयी मोरी तरुणाई
रे मइया मोरी
देखुंगा अपनी जोन्हाई...
परदेसवा दउड़े मोहे
काटे कटाई
हुँआ मोरी माई मोरा
जिया न लगाई
मोसे सही न जाए तन्हाई
रे मइया मोरी
देखुंगा अपनी जोन्हाई...
बैरी-दुनिया न सोहै मोहे
लागै पराई
छोड़ुंगा खेल ये
छुप्पन छुपाई
अब कब तक करौं सकुचाई
रे मइया मोरी
देखुंगा अपनी जोन्हाई...
हाथ करो पियर दोनों
हरदी लगाई
रोली संग कुमकुम-काजर
मेंहदी रचाई
उसे दुलहिन जइसन सजाई
रे मइया मोरी
देखुंगा अपनी जोन्हाई...
मोरे मनवा की पीर बढ़ि आई
रे मइया मोरी
देखुंगा अपनी जोन्हाई...
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