Thursday, 12 October 2017

मनवा की पीर

अमित राजपूत


मोरे मनवा की पीर बढ़ि आई
रे मइया मोरी
देखुंगा अपनी जोन्हाई...

छुटपन तो बीत गयो
जिया अकुलाई
जोधा बनि गयो अब
मोछो रेखियाई
देखो आ गयी मोरी तरुणाई
रे मइया मोरी
देखुंगा अपनी जोन्हाई...

परदेसवा दउड़े मोहे
काटे कटाई
हुँआ मोरी माई मोरा
जिया न लगाई
मोसे सही न जाए तन्हाई
रे मइया मोरी
देखुंगा अपनी जोन्हाई...

बैरी-दुनिया न सोहै मोहे
लागै पराई
छोड़ुंगा खेल ये
छुप्पन छुपाई
अब कब तक करौं सकुचाई
रे मइया मोरी
देखुंगा अपनी जोन्हाई...

हाथ करो पियर दोनों
हरदी लगाई
रोली संग कुमकुम-काजर
मेंहदी रचाई
उसे दुलहिन जइसन सजाई
रे मइया मोरी
देखुंगा अपनी जोन्हाई...

मोरे मनवा की पीर बढ़ि आई
रे मइया मोरी

देखुंगा अपनी जोन्हाई...

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