Thursday, 26 October 2017

चाहतें लुटती हैं...

अमित राजपूत



चाहतें लुटती हैं यहाँ चाहतें संजोना है,
कोई देव सा ऊँचा तो कोई घिनौना है।

जिनके अनुग्रह ने कभी रूह को पाकीज़ा किया- दो
चाहतें उनके लिए आज शक का घरौंदा है
कोई देव सा...
चाहतें लुटती हैं यहाँ चाहतें संजोना है,
कोई देव सा ऊँचा तो कोई घिनौना है।

इश्क अनमोल बड़ा कीमती ये गहना है- दो
चाहतें नादिर हैं किसी-किसी ने पहना है
कोई देव सा...
चाहतें लुटती हैं यहाँ चाहतें संजोना है,
कोई देव सा ऊँचा तो कोई घिनौना है।

मद में आकर के जवाँ मर्द बन रहे हैं कई- दो
चाहतें लाश बनीं उनके तन का बिछौना है
कोई देव सा...
चाहतें लुटती हैं यहाँ चाहतें संजोना है,
कोई देव सा ऊँचा तो कोई घिनौना है।

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