Tuesday, 3 October 2017

हार


अमित राजपूत
आज देखो
एक और हार का हार
मेरे सीने से आ लगा है
औ रेशमी सूत पर
कुमुदुनी की कोमल पंखुड़ियाँ
कैसे खूब जच रही हैं
सफलता मेरी देखो...
अब भी दुल्हन की तरह सज रही है।

नवाज़े थे कई दिन
तुमको
इल्म न रहा
के अब स्वेद स्वाद में बदलने की बारी है
कमबख़्त सफलता का ही पेट बड़ा है
आज देखो
टपकते नमकीन पानी से भरा
मटमैला कटोरा लेकर
मेरा अपना ही जिन्न खड़ा है
सफलता मेरी देखो...
उस पर ही पिण्डली मारे खड़ा है।

करूंगा तुष्ट
फिर संतुष्ट
तेरी आजमाइश का
बनुंगा मैं पति
ऐ हार !
तुझे हमदम बनाऊंगा
मिलुंगा इस क़दर तुझसे
जो फिर वापस न आऊंगा
सफलता मेरी देखो...
कर नाज संग साज तुझको अब बुलाऊंगा।

किया था जो शपथ मैंने
हार को हार बदलुंगा
तोड़कर अबकी पिनाक
हर लूंगा हार
जीतकर के तुझको सच कहूं
ये स्वयंवर रचाउंगा
सफलता मेरी देखो...
करुंगा मान तुझको अंक भरकर ले जाऊंगा।

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