Sunday, 18 October 2015

प्रयाग का सनद...


किसी इन्सान के लिए एक तरफ विजय-जश्न व तमाम चैतन्य से भरे आनन्द का उत्सव हो और दूसरी तरफ़ ग़म-ए-मातम का दिन तो कोई क्या चुनना चाहेगा। ज़ाहिर है कि वो चाहेगा कि जीवन के रंगों में उत्साह ही उत्साह भरा रहे। चूंकि इलाहाबाद के लगभग हर मुसलमान घर में दशहरे का पर्व बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है। वे देवी विसर्जन में भी झूमते हुए जाते हैं और रात को निकलने वाली चौकियों में मुसलमान के घर पैदा हुए जाने कितने ही तमाम लड़के-लड़कियां राम-सीता, शिव-पार्वती और हनुमान के पात्र बनते हैं और हिन्दुओं के घर से उनके बच्चे मोहर्रम के मातम में शामिल होते हैं। (मेरे बड़े भाई का सगा साला भी मोहर्रम का मातम मनाता है।)
ऐसी अनूठी और गंगा-जमुनी तहजीब का शहर है इलाहाबाद। इस बार मोहर्रम और दशहरे की चौकियों का समय लगभग समान है। एस बाबत शहर के गणमान्य मुसलमानों ने ये निर्णय लिया है कि मोहर्रम में ताज़िये नहीं निकाले जायेंगे, ताकि शहर अमन से एक त्यौहार को मुकम्मल कर लिया जाए और चूंकि हर जगह पहले से दुर्गा पंडाल लग चुके हैं इसलिए मुसलमान भाईयों ने निर्णय लिया कि ताज़िये नहीं निकाले जायेंगे।
प्रयाग एक बार तुमने फिर से अपने बाशिंदों का सनद पूरे अवाम के सामने रख दिया। तुम्हे प्रणाम प्रयाग।
तुम्हे प्रणाम..।।।


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