आज का रावण दहन। तमाम आतिशबाजियों के बीच
धूल-धूषित कथित रावण के झूठे विनाश के जश्न में गर्दा फांकते रामभक्त।
अधिकाधिक हानिकारक रसायनों से बने बारूद से
लिपटी ध्वनि व पावन समीर को प्रदूषित करने वाले बारूद के विस्पोट से उठते धुएं के
ग़ुबारों को सूंधते रामभक्त।
रावण यातना देता था। रामभक्तों को जीने नहीं
देता था। उसके निरंकुश शासन में लोगों की सांसे चलती थीं लेकिन रुक-रुक कर और वो
भी न जाने किस पल उखड़ जाए, ठीक आज के प्रदूषण भरे
वातावरण में जीने के बरक्स।
रावण यही तो चाहता था कि लोग उसके सरोकार में
घुट-घुट कर जियें।
जब वो ज़िन्दा था तब भी लोग ऐसे जीते थे...
अब वो नहीं रहा तो लोगों को अपने विनाश के
जश्न में इस क़दर डुवोकर चला गया कि लोगों को भान ही न रह गया कि वो कर क्या रहे
हैं।
सच में, इन
रामभक्तों को हुआ क्या...???
जो चाहा..वो पाया। तो जीत भी उसी की।
रावण जीत गया है।
तय करो ये विजय की दशमी आख़िर हम किसकी मना
रहे हैं...?
हम वास्तविक विजय दशमी मना सकते हैं, लेकिन वास्तविक मायनों में। ख़ुद को भारी प्रदूषण से बचाकर जो आपका किया
हुआ सबको भोगना पड़ता है।
इसलिए जागो..! और जीतो...!
शुभ विजयदशमी।
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