Tuesday, 14 June 2016

आदिवासी हूं...



आदिवासी हूं
समाजों की सभ्यता से
दूर
सारे मिथकों से
दस्तूरों की चकाचौंध से
मुक्त
उन्मुक्त
झोंझ हूं
मर्रा का
कुण्ड हूं
असभ्य मैं
जंगल का वासी हूं
आदिवासी हूं।
अभद्र हूं गलीच
मैं
मय की प्यासी हूं
हुंकार में
गरल हूं
सरल हूं
शोषण में
भद्दी चीत्कार हूं
जटिल हूं
कुटिल हूं
विस्तार में अनन्त हूं
मसत्स्य हूं
घमण्ड में
प्रकृति की दासी हूं
आदिवासी हूं।
अधर्म हूं
कुकर्म हूं
पाप का प्रलाप हूं
संताप हूं
न राम हूं
न रमजान हूं
अछूत हूं सुमार्ग का
कुमार्ग हूं
व्यथित हूं
पतित हूं
बोझ हूं धरा का
घुटन भरी फांसी हूं
आदिवासी हूं।
निरक्षर हूं
मैं पात्र हूं
इतिहास का
विकास का
अरि हूं
एकात्म का
दर्शन कहां मुझमें
स्व का ढाल हूं
रंगों में लाल हूं
साहित्य हूं
सृजन हूं
शब्द हूं
निःशब्द फंतासी हूं
आदिवासी हूं।
हब्सी हूं
कर्म में
उत्तेजना हूं
तेज की
प्यासी हूं
बाधक हूं
भय की कहानी हूं
हानि हूं
किसकी जंजाल लूं
अग्नि हूं
प्रचंड मैं
बवाल हूं
बोझ हूं
रोड़ा हूं
राष्ट्र की उदासी हूं
आदिवासी हूं।

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