Monday, 17 November 2014

समोसा



अमित राजपूत

 प्यार कब आयेगा हमारी जिन्दगी में…? क्या हमें भी किसी से प्यार होगा? कैसा होगा वो या फिर कैसी होगी वो जिससे हमें प्यार होगा? कैसी दिखेगी वो? हम कैसे जान पायेंगे कि यही हमारा सच्चा प्यार है ? सच है, प्यार दीवाली सरीखा महापर्व है जिसमें विश्वास के दिये हम एक-दूसरे के दिलों में जलाते हैं, और जीवन भर उन दीपों को किसी भी कीमत पर न बुझने देने के लिये थोड़ा खट्टी-मीठी यादें हम एक दूसरे को देते हैं। जिससे हमारे रिश्तों को और मजबूती मिले...।

पता नहीं किस मनहूस घड़ी में कामिनी ने इस यूनिवर्सिटी में एडमीशन लिया था। आज तो उसने धोखे से रुपाली का बीकर भी तोड़ दिया था। इससे पहले पिछले दस दिनों के भीतर कामिनी ने केमिस्ट्री लैब के अपने सारे ऑपरेटस तोड़ डाले थे जो उसे एक्सपेरिमेण्ट के लिए इश्यू हुये थे। सबसे पहले उसने सारी टेस्ट-ट्यूब्स बेकार कीं, दरअसल उसे अन्दाजा ही नहीं मिलता था कि उसे टेस्ट-ट्यूब को कितनी देर तक स्प्रिट लैम्प पर गर्म करना है। फिर एक-एक करके बीकर, फ्लॉस्क, पीपेट, ब्यूरेट सब कुछ टूटता गया उससे। बस, एक फ़नल ही थी वफ़ादार जो कामिनी शर्मा के साथ थी। स्प्रिट-लैम्प के भी बुरे हाल थे, अक्सर भभक जाया करती, संदेह तो यहां तक था कि कामिनी की स्प्रिट लैम्प नीचे से लीक थी।

रुपाली ने जायसवाल सर से शिकायत कर दी, जायसवाल सर कामिनी की क्लास लेना शुरू कर दिये, तब तक दिव्या और रश्मि भी आ धमकीं और खुलासा किया कि कामिनी ने उनके भी एक-एक ऑपरेटस उधार मांगकर तोड़ डाले हैं। अब तक जायसवाल सर आगबबूला हो गये कामिनी पर -‘‘इतनी लापरवाह और अनिष्ट लड़की नहीं देखी मैंने अब तक अपने टीचिंग कैरियर में। तुम अपने ऑपरेटस क्यों नहीं यूज़ करती...? इडियट।।।’’
कामिनी ख़ामोश खड़ी थी, फिर धीरे से चुप्पी तोड़ते हुए बोली ‘‘सर, मेरे अपने सारे ऑपरेटस टूट चुके हैं।’’
बेपरवाह...! केयरलेस….!! अभी महीने भर नहीं हुए तुम्हें ऑपरेटस दिये। मैं…… तुम्हें क्या…??? गेट-आउट !!!’’ जायसवाल सर ने कामिनी पर पेनाल्टी लगा कर उसका लैब में प्रवेश प्रतिबन्धित कर दिया।

रेशमी बालों की दो चोटी, उसमें लगे लाल फीते, आंखों में मक्खन जैसा काजल और पीठ पर एक स्कूल बैग। दिखने में पतली लेकिन भरपूर गुलाबी गाल... मानों डूबते सूरज की लालिमा यहीं सिमट जाती है। देखो तो इतनी भोली की कोई भी अनजाना कामिनी की मदद के लिए हमेशा खड़ा रह सकता था। आज यूनिवर्सिटी चैराहे के पास से ही प्रांजुल कामिनी का पीछा कर रहा था। दोनों बैचमेट हैं। शायद आज फिर केमिस्ट्री प्रैक्टिकल का ही टर्न है, लेकिन कामिनी डिपार्टमेंट में न जाकर सीधे फुटबाल ग्राउण्ड की तरफ चली गयी। प्रांजुल भी उसके पीछे प्रैक्टिकल बंक करके चला गया। ग्राउण्ड में प्रांजुल के दोस्त वैभव, आवेश और प्रगम पहले से बैठे हैं।

अबे तुम लोग आज प्रैक्टिकल नहीं कर रहे।’’ प्रांजुल पहले कामिनी और फिर अपने दोस्तों की ओर देखकर बोला।
अबे तू खुद से पूछ रहा है या हमसे’’ आवेश ने थोड़ा तफरीह के मूड में कहा।
क्या मतलब...?’’ प्रांजुल थोड़ा कन्फ्यूज़ होकर बोला।
प्रगम ने प्रांजुल के सारे भ्रम दूर करते हुए कहा, “जिस तितली को पकड़ने के लिए तू आज इसके पीछे आया है उसके लिए हम तब से प्रैक्टिकल बंक कर रहे हैं जब से जायसवाल सर ने इसे लैब से निकाला था।’’
क्या..? उस दिन वो लड़की यही थी जिसे जायसवाल सर डांट रहे थे?’’ प्रांजुल धीरे-धीरे समझने लगा।
ऑफकोर्स, पर तुझे नही पता...!!’’ आवेश बोला।
तू था तो उस दिन लैब में।’’ वैभव ने पूछा।
हां वो मै अन्दर रासायनिक तुला पर काम कर रहा था।’’
चल, अच्छा हुआ वरना तू भी तब से लग लेता और हम तीनों के साथ आकर सब चौपट कर देता।’’
वैभव की ये बातें सुनकर प्रांजुल चौंक गया और बोला-तो क्या तुम साले तीनों उससे एक साथ…? रहने दो, वो तुम्हारी भाभी होगी।’’
अच्छा- अच्छा, चलता बन। तीखे तेवर हैं बेटा उसके। चुपचाप बैठी रहती है।
इतने दिनों से ट्राई कर रहे हैं।’’ आवेश विश्वास भरी आवाज़ में बोला।
कहो तो आज, अभी प्रपोज कर दूं’’ प्रांजुल का विश्वास और भी पक्का था।

  
प्रांजुल जाकर एक गमले से गुलाब लाता है और सीधे कामिनी से बोला- एक्सक्यूज़ मी, हैलो..., प्रांजुल, प्रांजुल केशरवानी नाम है मेरा। बैचमेट हूँ आपका।’’
जानती हूँ।’’
मैं आपसे प्यार करता हूं... आई लव यू।’’
अच्छा, कब से…….?’’
अभी से ही समझ लो। बस, यें चोटियां खोल दो अपनी, थोड़ा और ठीक लगोगी।’’
जी नहीं, मेरे बाल बेतरतीब हो जाते हैं।’’
हेयर बैण्ड यूज़ किया करो... पिंक। तुम्हारे नेफ-फेस पर खूब फबेगा, तुम और भी मासूम दिखोगी। मुझे यही पसन्द है।’’
मुझे क्या लेना-देना तुम्हारी पसन्द-नापसन्द का’’
बिकॉज़ आई लव यू।’’
हो गया!!’’ कामिनी ने थोड़ा सख़्त लहज़े में बात की।
क्या मतलब है तुम्हारा, आई लव यू यार।’’
भाड़ में गया तुम्हारा आई लव यू। अभी चार भी महीने ठीक से नही हुए यूनिवर्सिटी ज्वाइन किये हुए। यही करने आते हो यहाँ? अभी उठो, वरना डीन से शिकायत करूंगी। ...लफंगा कहीं का।’’ कामिनी ने मानो सीता से काली का रूप बना लिया हो।

प्रांजुल भागता हुआ अपने दोस्तों की टोली में पहुंचा।
आवेश ने पूछा– ‘‘बड़ा बहादुर वीर बनकर गया था।’’
उल्टे पांव बेचारे की वीरता भाग खड़ी हुई।’’ वैभव ने तफरीह की।
वीरता जब भागती है तब उसके पैरों से राजनीतिक छल-छन्द की धूल उड़ती है।’’ प्रांजुल गम्भीर हो गया और वहां से चला गया।
            अब तक कामिनी की तीन-चार सहेलियां बन चुकी थीं। अगले दिन सभी कैन्टीन में समोसा खा रही थीं। प्रांजुल वहां पहुंच गया, बेझिझक उनकी कटोरियों से एक समोसा उठाकर समझाने लगा- इसे देखो, कितना प्यारा समोसा है न, एकदम लाल तपा हुआ। बिल्कुल कामिनी के गालों की तरह।’’
सच है रे कामिनी, तेरे गाल हैं या समोसा। एकदम लाल….’’ कामिनी की एक सहेली ने प्रांजुल की हां में हां मिला दी।
देखो मुझे तुम परेशान मत करो। ये लफंगों वाली हरकत बन्द कर दो वरना...। साइन्स फ़ैकल्टी के स्टूडेण्ट की तरह बिहैव करो। आर्ट फैकल्टी मत बनो।’’ कामिनी ने प्रांजुल को समझाया।
कला से ही तो जीवन चलता है बेब्बो। जिसके जीवन में कला नहीं वो जीवन नीरस है। जिस दिन तुम्हारे भीतर की कला जागेगी तुम मुझसे प्यार करने लगोगी। ट्रस्ट मी, इट इज़ द पॉवर ऑफ आर्ट।’’
उठो यहां से!! ......लफंगे।कामिनी अपनी सहेलियों को लेकर कैन्टीन से बाहर चली गयी, कुछ बड़बड़ाते हुए....।

एक दिन कामिनी के आने से पहले क्लास में प्रांजुल ने सभी को कामिनी के गालों के बारे में बताकर उसका मज़ाक उडा़ने का मूड बनाया। कामिनी के आते ही प्रांजुल तेजी से बोला – “रेड चीफ है तो……..?????’’
दर ही होगा….!!!’’ सभी क्लास में ज़ोरों से चिल्लाते।
रेड चीक है तो……???’’
समोसा ही होगा….!!!’’
फिर क्या था, क्लास से धीरे-धीरे स्लोगन उड़ता हुआ सभी डिपार्टमेण्ट्स तक पहुंच गया और अब कामिनी को लोग समोसा के नाम से जानने लगे। अब जब भी क्लास में किसी का मन कामिनी से मज़ाक के लिए होता तो यही दोहरा देता रेड चीफ है तो…..??”
रेड चीक है तो…??

   धीरे-धीरे कामिनी प्रांजुल से तंग होती जा रही थी और प्रांजुल मजाक-मजाक में कामिनी की केयर करने लगा। उसे अब इस बात की तकलीफ थी, कि एग्ज़ाम नज़दीक हैं और कामिनी की केमिस्ट्री लैब में एन्ट्री नहीं है। इसीलिए प्रांजुल रेगुलर लैब जाता और एक्सपेरिमेण्ट के बाद थोड़ा मिश्रण बचाकर कामिनी को दिखाता और पूछता- बताओ भला, ये कैसा रेडिकल हो सकता है, एसिड या फिर बेसिक?’’
एक दिन प्रांजुल प्रैक्टिकल के बीच में दौड़ता हुआ कामिनी के पास क्लास-रूम आया।
पता है, आज फेरस अमोनियम सल्फेट का ट्राईटेशन कर रहा था। पीपेट से सॉलूशन को खींचा और सारा का सारा मुंह में।प्रांजुल फटाफट कामिनी से पूरे अधिकार के साथ बता रहा था। ...और सुनकर कामिनी हंस पड़ी।
लेकिन दोनों अगले ही पल संजीदा हो गये और प्रांजुल लड़खड़ाते गले से बोला ‘‘सच में तुम्हारे चेहरे पे उदासी अच्छी नहीं लगती। तुम हंसते हुये अपने आप में सभी रोगों की दवा हो। लोग तम्हें हंसता हुआ देख लें और बस, सब कुछ अच्छा हो जाए।
‘‘हाँ, मै भी उदास रहना पसन्द नही करती। बताओ न प्रैक्टिकल का इतना टेन्शन है।
‘‘अब आज से ये टेन्शन तुम्हारी अकेले की नहीं रहेगी। लो, ये मिक्चर सूंघो और बताओ सिरके जैसा महक रहा है या नही?”
प्रांजुल एसिटिक एसिड के मिश्रण को हथेली पर रखकर कामिनी की नाक के पास ले जाता है। लेकिन शरारती प्रांजुल उंगलियों से उसके समोसे जैसे गालों को छू लेता है।
कम्बख़्त!! लफंगा कहीं का…..’’ कामिनी ने मुस्कुराते हुए कहा और थोड़ा शर्माकर खुद से नजरें छिपा ली।
प्रांजुल ने वापस लैब पहुंचकर अपने सारे ऑपरेटस तोड़ दिये और जायसवाल सर को रिपोर्ट किया। सर मुझसे मेरे सभी ऑपरेटस टूट गये। फनल भी खो गयी।’’

जायसवाल सर थोड़ा गुस्सा हुए फिर पेनाल्टी के साथ समझाते हुए दूसरे ऑपरेटस इश्यू करवाने की परमीशन दे दी। लेकिन प्रांजुल वापस आवेश और वैभव के ऑपरेटस तोड़कर पुनः जायसवाल सर को रिपोर्ट की। इस बार जायसवाल सर ने प्रांजुल को लैब से निकाल दिया।

अब प्रैक्टिकल के टाइम क्लासरूम में प्रांजुल और कामिनी बचा करते। एक दिन प्रांजुल ने कामिनी से पूछा तुम्हें कभी किसी से प्यार हुआ है ?’’
तुम फिर शुरू हो गये, मैं जा रही हूं…..’’ कामिनी उठकर जाने को हुई कि प्रांजुल ने उसका हाथ पकड़ लिया।
नहीं, नहीं कामिनी। नहीं, इस बार सच में मैं फ्लर्ट नहीं कर रहा। आई लव यू।’’
मैं…’’
दोनों फिर संजीदा हो गये।
देखो सबके जीवन में एक बार प्रेम की दीपावली जलती है। तुम्हारी भी जिन्दगी में जलेगी ज़रूर। तुम्हारे भी जीवन में वह आलोक का महोत्सव आयेगा, जिसमें हृदय हृदय को पहचानने का प्रयत्न करता है, सहिष्णु बनता है, दंभरहित होकर सर्वस्व दान करने का उत्साह रखता है।’’ प्रांजुल की बातों से कामिनी के मन में सन्नाटा सा छा गया।
पर प्रांजुल रुका नहीं- मैं तुम्हें फिर कह रहा हूँ, हेयर बैण्ड यूज़ किया करो….. पिंक। तुम्हारे नेफ फेस पर खूब फबेगा।’’
इस बार कामिनी ने प्रांजुल को डांटा नहीं। बस, “सॉरी’’ कहकर चली गयी।

उस दिन के बाद कभी कामिनी ने प्रांजुल से बात नहीं की, बल्कि जहाँ देखती रास्ता बदल दिया करती। वहीं मन का चंचल लेकिन साफ दिल शरारती प्रांजुल भी अपने स्वाभिमान की खातिर कभी कामिनी का पीछा नहीं करता।
ऐनुअल एक्ज़ाम ख़त्म हो गये। नेक्स्ट ईयर तो दोनों बिल्कुल एक-दूसरे से कम्युनिकेशनलेस हो गये। मानो दोनो एक-दूसरे से अनजाने हैं  एकदम अजनबी।
उस दिन कामिनी फिजिक्स डिपार्टमेण्ट में थी और प्रांजुल मैथमेटिक्स में। बारिश तेज हो गयी, प्रांजुल ऊपर सिर उठाकर ईश्वर को धन्यवाद दिया और मन ही मन बोला- ‘‘नयी बारिश का स्वागत है। बस, कुछ पिछली गलतियों को नजरअन्दाज करके मुझे मेरा प्यार दे दो…. हे प्रकृति!

प्रांजुल ऐसी प्रार्थना कर ही रहा था कि फिजिक्स की क्लास ओवर हो गयी। सभी स्टूडेण्ट गैलरी में टहलने लगे। कामिनी और उसकी कुछ सहेलियां सीढि़यों पर बैठ गयीं, जहां कुछ-कुछ पानी की बौछार पहुंच रही थी। कभी-कभी बौछार तेज़ होकर कामिनी के गालों को छूकर अचानक मैथमेटिक्स डिपार्टमेण्ट की ओर मुड़ जातीं, जहां से प्रांजुल कामिनी को स्निग्ध-भाव से देख रहा था। प्रांजुल कुछ समझ नहीं पा रहा था कि वो इस खूबसूरत बारिश में क्या करे। कभी वो सोचता कि मै डिपार्टमेण्ट के बाहर निकलकर भीग लूं, शायद मन की तपिश शांत हो जाये। पर शातिर समझ रहा था कि ये नटखट बारिश मन की तपिश को और बढ़ा देती है। आप भी ज़रा खुद सोचिए, कभी बारिश में भीगने के लिए निकलिए तो कदम खुद-ब-खुद प्रेमिका की गली में मुड़ जाते हैं। और भीगते हुए गर्लफ्रेण्ड के दरवाजे से निकलने का भी अपना अलग मज़ा है। लेकिन प्रांजुल की मोहब्बत को कामिनी ने एक्सेप्ट ही कब किया था जो वो उसकी गर्लफ्रेण्ड कहलाती। इसलिये प्रांजुल सोच रहा था- ये जो मैथ और फिजिक्स डिपार्टमेण्ट को जोड़ने वाली छोटी पतली नाली है, इसी में अपनी इज़हार-ए-मोहब्बत बयां कर कागज की नाव बना कर बहा दूं।’’
प्रांजुल के सोचते हुए ही फिजिक्स से मैथ की ओर उस पतली नाली से एक नाव आ ही रही थी। प्रांजुल ने नाव को तपाक से पकड़ा। खोला तो इज़हार-ए-मोहब्बत ही थी…. रिचा का वैभव के नाम। प्रांजुल झल्ला गया लेकिन समोसा हंस-हंस कर अपनी लालिमा बढ़ा रहा था।

आज कामिनी शर्मा जी के रेशमी बाल खुले हैं। कामिनी यूनिवर्सिटी जाने से पहले कटरा-मार्केट की एक कॉस्मेटिक शॉप पर खड़ी हैं।

भइया, एक हेयर बैण्ड दीजिएगा  पिंक।’’ कामिनी ने दुकानदार से बेहद खुश होकर हेयर बैण्ड मांगा।
हेयर बैण्ड लगाकर कामिनी आज यूनिवर्सिटी गयी और वहां इधर-उधर जाने किसे ढूंढ रही थी। बस, प्रांजुल आज यूनिवर्सिटी नहीं आया था। बेचारी कामिनी... कैम्पस का कोना-कोना छाने डाल रही थी। शाम तक कामिनी आग बबूला हो चुकी थी प्रांजुल को ना पाकर। वापस घर जाते समय थककर उसने एक कॉफी पीनी चाही।
कामिनी कैफेटेरिया पहुंची तो उसी कैफेटेरिया की पिछली बेंच पर उसने प्रांजुल को एक सुन्दर हमउम्र लड़की के साथ बैठे देखा। कामिनी की थकान झट से गायब हो गयी, मानों थका हुआ सिपाही निहत्थे अपराधी को पकड़ने के लिए एकबारगी ताकत से भर गया हो। कामिनी झट से पिछली बेंच पर पहुंच गयी।
तो तुम इसीलिए आजकल मुझ पर ध्यान नहीं दे रहे। सेकेण्ड-ईयर में पहुंचते ही जो तुम्हे ये मिल गयी है, हां। पहले कैसे प्यार के पाठ पढ़ाया करते थे। अब एकदम से मुझे भुला दिया है।।कामिनी बिना कुछ सोचे समझे प्रांजुल पर एकदम बिफर पड़ी, लेकिन प्रांजुल सहज बना रहा।
‘‘श्वेता यही हैं कामिनी शर्मा
प्रांजुल ने अपनी बेंच पर बैठी हमउम्र लड़की का परिचय कामिनी से करवाया।
कामिनी बोली- ‘‘करो डेटिंग, अब भला मेरी क्या जरुरत।
‘‘वैसे पिंक हेयर बैण्ड तुम्हारे नेफ फेस पर फब रहा है, लेकिन तुम मासूम नही लग रही हो। थोड़ा गुस्सा ठण्डा करो, कॉफी वगैरह पियो। ...यहां समोसा भी मिलता है, ऑर्डर किया है मैने, वेटर ला रहा होगा। लेकिन इनसे मिल लो, सी इज़ माई कज़िन श्वेता, मुझसे मिलने आयी है। इसलिए आज कैम्पस नहीं आ सका।’’
कामिनी की आंखें खुली रह गयीं।
वाट अ ब्यूटीफुल दिस गर्ल इज़ !’’ श्वेता की प्रतिक्रिया थी।
मैं तो आज भी तुमसे उतना ही प्यार करता हूं पगली, आई लव यू। यू लव्स मी…??’’
कामिनी ने आज भी प्रांजुल के सवाल का उत्तर नहीं दिया। बस, अपना हाथ प्रांजुल के हाथों में थमा दिया और उसकी आंखों में कुछ देर तक डूबी रही।
वैसे तुम्हारे रेड चीक आज भी समोसे जैसे लाल हैं।प्रांजुल ने कहा।
पता है तुम्हारे अलावा कोई मुझे समोसा बुलाता था तो मुझे बड़ी खुन्नस आती थी, जी करता था एक कान
के नीचे बजा दूं।’’ दांत पीसती भई कामिनी ने कहा।
सर समोसा’’ वेटर समोसा लेकर उनकी बेंच पर आ खड़ा हुआ था।

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