Friday, 28 November 2014

मै ज़िन्दा हूं...




•अमित राजपूत
 
 मै ज़िन्दा हूं.....       
मै ज़िन्दा हूं अमावस की रात को काली कोठरी में
फटी तेरी ख़ून से लतपत काली सलवार सिलने को
मै ज़िन्दा हूं।

 

हां, मै ज़िन्दा हूं.....
मै ज़िन्दा हूं रघु राय के उस चित्र में
खुली आंखों मे नूर भरने को
उस त्रासदी के गुनहगारों की आंखें फोड़कर
उन्हे सूर करने को
मै ज़िन्दा हूं।

 
मै ज़िन्दा हूं सरहद पर अपने हुस्न के पाश मे
जवानों को फसाने वाली विष-कन्याओं को      
तड़पती सेज़ में छोड़कर
उन्हें बांझ बनाने को
मै ज़िन्दा हूं।


 
हां, मै ज़िन्दा हूं.....
आज मै ज़िन्दा हूं उत्तरी ऑयरलैण्ड, वेल्स
स्कॉटलैण्ड औ इंग्लैण्ड को अलग-थलग करके
एलिज़ाबेथ के ताज़ से कोहिनूर लाने को
मै ज़िन्दा हूं।

 


मै ज़िन्दा हूं स्त्री और पुरुष के चंचल मन से परे
खुजाईन के दिल मे बसे प्यार का मर्म जानने को
उन्हे तो ख़ुदा ने बनाया
पे तुम्हारा धरम जानने को
मै ज़िन्दा हूं।


 
हां, मै ज़िन्दा हूं.....
मै ज़िन्दा हूं आदिवासियों के घरों मे मनुस्मृति जलाने को नहीं, 
संसद के आंगन मे उनके उत्थान के लिए
उपयोग न हुए कोरे राजपत्रों को जलाकर
धुआं का गुबार उठाने को
मै ज़िन्दा हूं।

मै ज़िन्दा हूं वेदों की ऋचाओं में
सनातन की सहिष्णुता में
आयतों के महामंत्रों में        
बाइबिल की वर्सेज़ में
मैं ज़िन्दा हूं।


 
हां, मैं ज़िन्दा हूं... 
आज मै नफरतों के हाट मे खड़ा
मोहब्बत की तिज़ारत करने को
विश्व-शान्ति अमन, सुख-चैन का
पैग़ाम देने को मै ज़िन्दा हूं।
हां, मै ज़िन्दा हूं।



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