क्या कभी कोई रहना चाहता है
जीवन में निर्वेद में?
दुःख के बाद सुख होगा
होगा सुख के बाद दुःख भी
दुःख इसी का है,
क्या कभी कोई भटकना चाहता है
जीवन में निर्वेद में?
हैं श्रम में लिप्त नर-नारी
नरक है जीवन बिना श्रम का,
कभी अजगर से जाकर के तो पूछो
वो चिल्लाकर के बोलेगा,
क्या कभी कोई भटकना चाहता है
जीवन में निर्वेद?
थोड़ा ये जीवन मीठा है
है थोड़ा संसार कड़वा भी
पर जरा उस संप्रभु से भी तो जानो
आसुत नीर की तरह
है भला जीवन तेरा कैसा?
क्या कभी कोई तैरना चाहता है
जीवन में निर्वेद में?
जो होगा वो होगा
पर तू अपना काम करता जा
न कर बन्दे तू आशा मोक्ष की
है आनन्द यहीं पड़े रहकर,
कया कभी कोई मचलना चाहता है
जीवन में निर्वेद में?
है धरती धन्य लेकिन वो अपना स्थिति से परेशां है
है नीचे रसातल तो ऊपर आसमां है
बेवजह वो चिन्तित है, वो कहती है
क्या कभी कोई रहना चाहता जीवन में निर्वेद में?
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