•अमित राजपूत
हवाएं
गर्म थीं उन दिनों। सूरज सर चढ़ चुका था। हलांकि आंधी तो नहीं चल रही थी, लेकिन
हरिश्चन्द्र के घर की छत पर पूरे एक पोर उंगली भर धूल जमा थी। हरिश्चन्द्र बताते
हैं कि ये हाल तो सामान्य हवा के चलने से है साहब, अगर आंधी चल जाए तो अटरिया के
कुल धूल से अच्छा खासा गारा बना लो। हमै तो तंगी की आदत हस होई गए है। सबसे बड़ी
दिक्कत सुखवन डारे मा होत है। कतो डाओ.., तो जेतना सुखवन ओतनेन गर्दा। गर्मी की इन
रातन मा जो सोचो कि अटरिया मा बिछा के सो जाओ तो दूभर है। खटिया मा सोइत हन, मगर
वहू मा रात भर मा मूठिन गर्दा नेकुआ-मोहे मा भर जात है। कुछ तो एक्सीडेण्टन से मरे
जात हैं औ हम पन्चे मरबे दमा से साहब। हरिश्चन्द्र कहते-कहते बाहर की ओर उस क़ब्र
को देखकर कोसने लगते हैं।
ये क़ब्र फ़कीर हजरत सैय्यद राजा मीर हसन की
बताई जाती है। उत्तर प्रदेश के फ़तेहपुर ज़िले में ज़िला मुख्यालय से लगभग 21 किमी
दूर पश्चिम दिशा में ग्राम फ़रीदपुर-उसरैना में नेशनल हाईवे-02 की चौड़ाई के
अनुसार राजमार्ग के बीचो-बीच स्थित एक मज़ार, जिसका क्षेत्रफल मध्य राजमार्ग पर
लगभग 10गुणा15 फिट है। राजमार्ग पर इस क़ब्र के दोनो ओर गांव की बस्ती है।
ग्रामवासी सीताराम मौर्य बताते हैं कि इस क़ब्र पर मज़ार बनने की कई विसंगतियां
हैं। मज़ार के अवरोध के कारण यहां पर राजमार्ग के निर्माण के समय उसकी गुणवत्ता
ठीक नहीं रही, जिसके कारण यह उखड़ सी गई है। और आज यह धूल भरी सड़क से कुछ कम नहीं
है। ये धूल ही हम गांव वालों के लिए बड़ी समस्या है। साथ-साथ इसके अवरोध के चलते
यहां औसतन 4-5 दुर्घटनाएं प्रति सप्ताह की
दर से होती रहती हैं। इन दुर्घटनाओं की प्रकृति ज्यादातर ऐसी होती है जिसमे मृत्यु
निश्चित रहती है। यानी कि दुर्घटनाएं भयंकर और निरन्तर होती हैं।
यद्यपि क़ब्र में सदियों पहले सो चुका संत यदि
आज रूहवान होता तो वह कतई ऐसा कृत्य न करता जिससे समाज या अवाम को किसी भी प्रकार
की नुकसान हो या अशान्ति फैले; तथापि धर्म के ठेकेदार तथा दूसरों के इशारे पर तर्क
प्रत्तुत करने वाले ज्ञाता आज उस निर्दोष संत की आड़ में राजनीति का स्वाद चखने की
कोशिश कर रहे हैं। जबकि नीति यही कहती है कि सुख उठाओ, पर दूसरों के दुःख का कारण
न बन जाओ।
ख़ैर, गांव के ही एक शिक्षक राजू लोधी कहते
हैं कि यह समझने वाली बात है कि राजमार्ग-निर्माण के दौरान एक शिव मंदिर भी अवरोध
उत्पन्न कर रहा था, जिसका उचित स्थान्तरण करके राजमार्ग बनवाया गया। यही वाकया
मज़ार के लिए भी दोहराया जा सकता है। वास्तव में यह इस्लाम के विरुद्ध नहीं है,
क्योंकि पूरब और पश्चिम सब अल्लाह के हैं। जिस ओर भी तुम रुख करोगे उसी ओर अल्लाह
का रुख है। अल्लाह सर्वव्यापी है और सब कुछ जानने वाला है- “ब लिल्लाहिल मशरिकु
बलमगरिबु।” इस प्रकार, इसके अवरोधों को चाहिए कि महर्षि दधीचि तथा स्वतंत्रता
सेनानी लक्ष्मी सहगल के कर्मों का अनुकरण करें जिन्होनें अवाम की खातिर अपना
देहदान करके अच्छी नीति अपनाई है।
क्या कहते हैं इस्लामी संगठन
“भारत
को स्वतंत्र हिन्दू राष्ट्र घोषित करने के बाद आप इस क़ब्र को हटा सकते हैं।
वरना कोई दिल्ली में इंदिरा या राजीव गांधी की क़ब्र हटवा कर दिखाए तो जानें।”
-
अख़लाक हुसैन-
मज़ार
के संरक्षक
|
जमात-ए-इस्लामी
हिन्द के सदस्य डॉ0 ऐनुल हक़ बताते हैं कि इस्लाम में देहदान करने का कोई विधान
नहीं है। यह वर्जित है क्योंकि हर शय अल्लाह की है। हम बिना उसकी मर्ज़ी के इसे
कैसे दान कर सकते हैं? वहीं इस्लामिक रिसर्च फाउण्डेशन (आईआरएफ) के मैनेज़र डॉ0
आरसी कुरैशी ने इस प्रकरण पर कुछ भी कहने से साफ मना कर दिया ।
मज़ार का माजरा
ये
मज़ार फ़कीर हज़रत सैय्यद राजा मीर हसन की बताई जाती है, जो एक सुन्नी मुसलमान थे।
ये फ़कीर सूफ़ी संत थे, जो समाज का उत्थान चाहते थे। तथा लोगों को प्यार और शान्ति
का उपदेश दिया करते थे। लोगों का ऐसा मत है कि जब गुलाम शेरशाह सूरी ने पेशावर से
कलकत्ता तक सन् 1542ई0 में ग्राण्ड-ट्रण्क रोड का निर्माण करवाया था, उससे पहले यह
मज़ार रही होगी। अतः सूफ़ी संत लगभग सन् 1541ई0 से पहले रहे होंगे। कारण, क़ब्र से
500 मीटर पूरब तथा1000 मीटर पश्चिम तक कुल मिलाकर 1.5 किमी0 लम्बी जीटी रोड क़ब्र
से थोड़ा वक्र बनाती है। इस प्रकार, यह क़ब्र लगभग 471 वर्ष पहले की मानीं जा सकती
है।
इस्लाम का मत
पवित्र
कुरआन कहती है “फवयलुल-लिल्मुसल्लीन अललजीना-हुम अन् सलातिहिम साहून अल्लजीन हुम
युराऊ-न।” अर्थात् पिर तबाही है उन नमाज़ पढ़ने वालों के लिए जो अपने नमाज़ से
गफलत बरतते हैं। जो दिखावे का काम करते हैं और साधारण ज़रूरत की चीज़ों को (लोगों
को) देने से कतराते हैं। कुरआन कहती है कि ज़मीन और आसमान की हर चीज़ का मालिक
अल्लाह ही है, ताकि अल्लाह बुराई करने वालों को उनके कर्मों का बदला दे और उन
लोगों को अच्छा प्रतिदान प्रदान करे जिन्होनें अच्छी नीति अपनाई है। अर्थात् “लिल्लाहि माफिस्समावती व माफिलअर्जिल-यज्जि-यल्लजी-न
असाऊ विमा अमिलू व यज्जि-यल्लजी-न अह-सन विल्हुसना।”
muslim, maruful hadees, vol. 3, page-486 के
अनुसार हजरत मोहम्मद (स0) ने भी पक्की मज़ार या क़ब्र बनाने से मना किया है और यह
भी कहा है कि क़ब्र पर कोई स्मारक या इमारत न बनाई जाए। इस प्रकार जो इस्लाम में
नहीं है वह अगर इस मज़ार के संरक्षक आदि करने
लगें तो वह सही नहीं हो जाएगा, बल्कि ग़लत ग़लत ही रहेगा।
दूसरे इस्लामी देशों की ज़िदें
अगर हम इस्लामी मुल्क सऊदी अरब की घटनाओं का
ज़िक्र करें तो वहां राजमार्ग के निर्माण में ही एक मस्ज़िद को ढहाया जा चुका है।
और तो और, वहां के एक शाही नवाब ने अपना महल बनवाने में एक मस्ज़िद को तोड़वाने का
दुस्साहस भी किया है और वहां के हुक्मरानों ने कोई हरकत तक न की। यद्यपि ऐसे मामले
में पूरी दुनिया के इस्लामी नुमाइंदे हरकत मे आ जाया करते हैं।
दूसरी ओर, ईरान की एक युवा इंटीरियर डिज़ाईनर
रेहाना जेब्बारी को निर्ममता से फांसी दी गयी, जिसके पहले उन्होंने अपनी मां को
दिए एक पत्र में लिखा था- “मेरी रहम दिल अम्मी, प्यारी शोलेह, मेरी अपनी ज़िन्दगी
से भी प्यारी, मै मिट्टी में मिलकर सड़ना
नहीं चाहती। मै नहीं चाहती कि मेरी आंखें और मेरा जवान दिल धूल में मिल जाए। तो यह
इंतज़ाम करने की इजाजत मांगो कि जैसे ही मुझे फांसी पर लटकाया जाता है, मेरा दिल,
मेरी आंखें, किडनी, हड्डियां और जो कुछ भी किसी को दिया जा सकता है, मेरे जिस्म से
निकाल लिया जाए, और उसको तोहफे के तौर पर दे दिया जाए, जिसे इसकी ज़रूरत हो।”
...तभी हरिश्चन्द्र ने अचानक से अपनी एकटकी तोड़ी
और नज़रें उस मज़ार से हटाकर आसमान की ओर करके सोचने लगे कि यदि इस मज़ार मात्र के
कारण से यहां पर इस तरह से दुर्घटनाओं का सिलसिला यूं ही ज़ारी रहा तो एक दिन पूरा
देश यहीं दफ़न नज़र आयेगा, क्योंकि जिस तरह से धरती के मध्य में मक्का स्थित है,
ठीक उसी प्रकार राजमार्ग के मध्य में यह क़ब्र बनी है। किन्तु अफसोस कि यह मक्का का
क़ाबा नहीं जो शान्ति का पैगाम देता है। ये तो असुविधाओं व अशांति का कारक है जो
दुर्घटनाएं सरेआम देता है। निष्कर्षतः यदि इस क़ब्र का स्थानान्तरण नहीं होता है
तो जिस तरह से यहां दुर्घटनाओं का सिलसिला ज़ारी है, एक दिन यहीं पर नज़र आएगी
आपको पूरे अवाम की क़ब्र...।
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